SR-B375 | परिचय | खाद्य संसाधनों में सुधार | कक्षा- 09 विज्ञान (हिंदी माध्यम)
खाद्य संसाधनों में सुधार
- भोजन से हमें प्रोटीन वसा विटामिन व खनिज लवण प्राप्त होते हैं।
- इन तत्वों के कारण हमारा विकास तथा वृद्धि होती है।
- पौधे तथा जंतु दोनों ही भोजन का मुख्य स्त्रोत होते हैं।
- भोज्य पदार्थ कृषि तथा पशुपालन से प्राप्त होते हैं।
- हरित क्रांति के कारण फसलों के उत्पादन में सुधार देखा गया है।
SR-B376 | फसल उत्पादन में उन्नति | खाद्य संसाधनों में सुधार | कक्षा- 09 विज्ञान (हिंदी माध्यम)
फसल उत्पादन में उन्नति
- कार्बोहाइड्रेट-यह गेहूं, मक्का से प्राप्त होता है।
- प्रोटीन- उड़द, मूंग, मसूर से प्राप्त होता है।
- वसा- यहां सोयाबीन, मूंगफली, तिल, अरंडी, सरसों, अलसी और सूरजमुखी से प्राप्त होती है।
- सब्जियों, मसालों तथा फलों से हमें विटामिन तथा खनिज लवण प्राप्त होते हैं।
- वसीम जई सूडन का प्रयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है।
- पौधे में पुष्प आना तथा वृद्धि करना प्रकाश के मात्रा पर निर्भर करता है।
SR-B377 | फसलों के प्रकार | खाद्य संसाधनों में सुधार | कक्षा- 09 विज्ञान (हिंदी माध्यम)
फसलों के प्रकार
- फसलों को मुख्य रूप से तीन वर्गों में बांटा गया है-
रबी की फसल
- इसके अवधि अक्टूबर से फरवरी के मध्य होती है।
- इसके अंतर्गत गेहूं, जौ, चना, मटर और सरसों आते हैं।
खरीफ की फसल
- इसके अवधि जून से सितंबर के मध्य होते हैं।
- इसके अंतर्गत ज्वार, मक्का, मूंगफली, तिल, मूंग, और उड़द आते हैं।
जायद की फसल
- इसके अवधि मार्च से जून के मध्य के होते हैं।
- इसके अंतर्गत खरबूजा, तरबूज, ककड़ी, लौकी इत्यादि आते हैं।
फसल उत्पादन में सुधार के लिए निम्न बातों का ध्यान रखा जाता है
- उपयुक्त बीज चुनने चाहिए।
- उगी हुई फसल की सुरक्षा करनी चाहिए।
- कटी हुई फसल को हानि से बचाना चाहिए।
SR-B378 | फसलों के किस्मों में सुधार | खाद्य संसाधनों में सुधार | कक्षा- 09 विज्ञान (हिंदी माध्यम)
फसलों के किस्मों में सुधार
- फसल की उत्तम किस्म चुन्नी चाहिए जिसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता उर्वरक के प्रति अनुरूपता हो।
- ऐच्छिक गुण वाले जीन डालकर फसल की उत्पादकता में सुधार कर सकते हैं।
- प्रति एकड़ में फसल की उत्पादकता बढ़ाकर उच्च उत्पादकता प्राप्त कर सकते हैं।
- जैविक और अजैविक कारणों के कारण भी फसल की उत्पादकता प्रभावित होती है ।
- फसल के परिपक्व काल में परिवर्तन के कारण दी फसल की उत्पादकता प्रभावित होती है।
- व्यापक अनुकूलता वाली किस्में का विकास करना चाहिए।
- चारे के लिए ऐसी फसल को बोलना चाहिए जिसकी सघन शाखाएं हो।
- अनाज के लिए ऐसी फसलों को बोया जाना चाहिए जिनका पौधा बोना हो।
SR-B379 | फसल उत्पादन प्रबंध | खाद्य संसाधनों में सुधार | कक्षा- 09 विज्ञान (हिंदी माध्यम)
फसल उत्पादन प्रबंध
- आर्थिक परिस्थितियां किसान को विभिन्न कृषि प्रणालियों तथा कृषि तकनीकों को अपनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
पोषक प्रबंध
- पौधों को पोषक पदार्थ हवा पानी तथा मिट्टी से प्राप्त होता है।
- हवा से पौधों को कार्बन तथा ऑक्सीजन प्राप्त होती है।
- पानी से पौधों को हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन प्राप्त होती है।
- मिट्टी से पौधों को अनेक पोषक तत्व मिलते हैं।
वृहद पोषक तत्व
- वे पोषक पदार्थ जो पौधों को सर्वाधिक मात्रा में आवश्यक होते हैं वृहद पोषक कहलाते हैं।
- इसके उदाहरण नाइट्रोजन फास्फोरस पोटेशियम कैल्शियम मैग्नीशियम इत्यादि है।
सूक्ष्म पोषक तत्व
- वे पोषक पदार्थ जो पौधों को कम मात्रा में आवश्यक होते हैं सूक्ष्म पोषक कहलाते हैं
- इसके उदाहरण आयरन मैग्नीज कॉपर क्लोरीन इत्यादि है।
SR-B380 | खाद | खाद्य संसाधनों में सुधार | कक्षा- 09 विज्ञान (हिंदी माध्यम)
खाद
- खाद में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा अधिक होती है।
- इससे पशुओं के अपशिष्ट तथा पौधों के कचरे के अपघटन से तैयार किया जाता है।
- यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है।
- यह मिट्टी की उर्वरता में सुधार करता है इसके कारण रेतीली मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है।
- खाद बनाने के लिए वर्मी कंपोस्ट तथा हरी खाद विधियों का का प्रयोग किया जाता है।
खाद के प्रकार
वर्मी कंपोस्ट
- पौधों तथा जानवरों के अपशिष्ट पदार्थों के शीघ्र निरस्त्रीकरण की प्रक्रिया द्वारा बनाया जाता है जिसे वर्मी कंपोस्ट कहते हैं।
- इसके अंतर्गत कृषि अपशिष्ट पदार्थ जिसे पशुधन का मल मूत्र गोबर सब्जी के छिलके कचरा फेंके हुए खरपतवार आदि को गड्ढे में डालकर यह खाद बनाई जाती है।
- इसमें कार्बनिक पदार्थ सा पोषक तत्व बहुत अधिक मात्रा में होते हैं।
हरी खाद
- फसल उगाने से पहले खेतों में कुछ पौधे मूंग ग्वार आदि गाकर हल चला दिया जाता है तथा इनको खेत की मिट्टी में मिला दिया जाता है।
- इससे नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा में वृद्धि होती है।
उर्वरक
- यह एक रासायनिक पदार्थ होता है जिसे व्यवसायिक रूप से तैयार किया जाता है।
- इसमें नाइट्रोजन फास्फोरस तथा पोटेशियम मिलता है। इसके प्रयोग से पौधे के कायिक भागो जैसे पत्तियां शाखाएं तथा फूल में वृद्धि होती है।
- आर्थिक दृष्टि से उर्वरक महंगे होते हैं तथा इन से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं उर्वरक का प्रयोग उचित मात्रा में तथा उचित समय पर किया जाना चाहिए।
- उर्वरक अधिक सिंचाई के कारण पानी में बह जाते हैं। जिससे उर्वरक का पुनः अवशोषण नहीं हो पाता है
- लगातार उर्वरकों के प्रयोग के कारण मिट्टी की उर्वरता समाप्त हो जाती है क्योंकि इसमें कार्बनिक पदार्थों की आपूर्ति नहीं हो पाती है।
- उर्वरकों के प्रयोग से सूक्ष्मजीव तथा भूमिगत जीवों का जीवन चक्र विरुद्ध हो जाता है।
- उर्वरकों के उपयोग द्वारा फसलों का अधिकतम उत्पादन कम समय में प्राप्त कर सकते हैं परंतु कुछ समय पश्चात मृदा की उर्वरता समाप्त हो जाती है अतः हमें सलाह दी जाती है कि हमें खाद का प्रयोग करना चाहिए।
- कार्बनिक खेती में रासायनिक उर्वरक का प्रयोग ना करके कार्बनिक खाद का प्रयोग किया जाता है।
- खाद्य संग्रहण करते समय नीम की पत्ती का प्रयोग विशेष रूप से जैव कीटनाशकों के रूप में किया जाता है।
SR-B381 | सिंचाई | खाद्य संसाधनों में सुधार | कक्षा- 09 विज्ञान (हिंदी माध्यम)
सिंचाई
- भारत में अधिकांश खेती वर्षा पर आधारित होती है।
- अधिकांश क्षेत्रों में फसल के ऊपर समय पर मानसून आने तथा वर्षा काल में उचित वर्षा होने पर निर्भर करती है।
- वर्षा कम होने से फसल का उत्पादन प्रभावित होता है।
सिंचाई के साधन
- इसके अंतर्गत कुआं नलकूप नदी जल उठाओ प्रणाली नहरे तथा तालाब प्रमुख स्त्रोत हैं।
- कृषि में पानी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए आधुनिक विधियों के अंतर्गत वर्षा जल एकत्र करना तथा जल विभाजन के उचित प्रबंधन की व्यवस्था की गई है।
SR-B382 | फसल पैटर्न | खाद्य संसाधनों में सुधार | कक्षा- 09 विज्ञान (हिंदी माध्यम)
फसल पैटर्न
मिश्रित फसल
- इसके अंतर्गत दो या दो से अधिक फसलों को एक साथ एक ही खेत में उगाया जाता है।
- गेहूं के साथ चना की खेती करना।
- गेहूं के साथ सरसों की खेती करना।
- मूंगफली के साथ सूरजमुखी की खेती करना।
अंतराफसलीकरण
- दो या दो से अधिक फसलों को एक साथ एक ही खेत में निर्दिष्ट पैटर्न में उगाना अंतराफसलीकरण कहलाता है।
- इसमें सोयाबीन के साथ मक्का की खेती की जाती है।
- बाजरा के साथ लोबिया की खेती की जाती है।
फसल चक्र
- किसी खेत में क्रमवार पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार विभिन्न फसल उगाने को ही फसल चक्र कहते हैं।
SR-B383 | फसल सुरक्षा प्रबंध | खाद्य संसाधनों में सुधार | कक्षा- 09 विज्ञान (हिंदी माध्यम)
फसल सुरक्षा प्रबंध
खरपतवार
- कृषि योग्य भूमि अनावश्यक पौधों का उगना खरपतवार कहलाता है।
- खरपतवार के उदाहरण गोखरू गाजर का मोथा इत्यादि है।
- खरपतवार को हाथ से हटा सकते हैं।
- समय पर फसल होगा कर क्यारियां तैयार करके अंतराफसलीकरण विधि का प्रयोग करके हम फसल की सुरक्षा कर सकते हैं।
किट पीड़क
- यह किट पीड़क पौधों की पत्तियां, तने तथा मूल को काटकर नष्ट कर देते हैं।
- पौधों का कौशिकीय रस चूस लेते हैं।
- यह विभिन्न पौधों के तने तथा पत्तियों में छीद्र कर देते हैं।
SR-B384 | अनाज का भंडारण | खाद्य संसाधनों में सुधार | कक्षा- 09 विज्ञान (हिंदी माध्यम)
अनाज का भंडारण
- कीट कवक चीचड़ी जीवाणु भंडारित कृषि उत्पादों को हानि पहुंचाते हैं।
- इसके अलावा नमी ताप विद्या देवी भंडार अनाज को नष्ट कर देते हैं।
- भंडारण के समय अनाज में है वजन कम होना गुणवत्ता में कमी आना अंकुरित होने की क्षमता कम होना इत्यादि नुकसान हो सकते हैं।
- निरोधक तथा नियंत्रित विधियों का प्रयोग करके ही भंडारण हमें करना चाहिए।
- अनाज को धूप में सुखाकर भंडारित कराएं।
SR-B385 | पशुपालन | खाद्य संसाधनों में सुधार | कक्षा- 09 विज्ञान (हिंदी माध्यम)
पशुपालन
- पशुधन के प्रबंध को पशुपालन कहते हैं।
- इसके अंतर्गत पशुओं को भोजन देना, प्रजनन करवाना तथा रोगों पर नियंत्रण इत्यादि कार्य सम्मिलित किए गए हैं।
पशुपालन का उद्देश्य
- दूध देने तथा कृषि कार्य के लिए पशुओं को पाला जाता है।
- दूध देने वाली मादाओ को दुधारू पशु कहते हैं।
- पशुओं के दूध वितरण काल को बढ़ाने के लिए पशुओं की विदेशी नस्लों को पाला जाता है।
- गाय भैंस के लिए नियमित सफाई तथा उचित आवास की आवश्यकता होती है।
- सर्दी गर्मी बरसात से बचने हेतु उचित वातावरण होना चाहिए।
- फर्श ढलवा होना चाहिए, जिससे पानी आसानी से बह जाएं।
- पशुओं को ऐसा आहार देवें, जिससे वह स्वस्थ रहें तथा दुग्ध उत्पादन भी बढ़ता जाए।
SR-B386 | मुर्गी पालन | खाद्य संसाधनों में सुधार | कक्षा- 09 विज्ञान (हिंदी माध्यम)
मुर्गी पालन
- अंडे के लिए मुर्गी पालन किया जाता है।
- अंडे के लिए लेयर तथा मांस के लिए ब्रोलर नस्ल के मुर्गियों को पाला जाता है।
- मुर्गी पालन में स्थित आवास उपयुक्त तापमान की आवश्यकता होती है।
- रोगों से बचने के लिए मुर्गियों की स्वच्छता तथा नियत समय पर टीका लगवाने चाहिए।